Kavita Jha

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मेरी बैस्टी मेरी डायरी# डायरी लेखन प्रतियोगिता -17-Dec-2021

नवंबर की खास बातें...

30 दिसम्बर
सुबह के नौ बजने को हैं...
और मेरा मन इस साल के बीते हर महीने की यादों में नवम्बर में पहुंच गया...

नवंबर दस तारीख तक तो अपने जन्मस्थान दिल्ली में ही थी, फिर रांची अपने ससुराल वापस आ गई। ठंड शुरू हो गई थी और मैं तो सिर्फ दो दिन के लिए ही घर से निकली थी चार अक्टूबर को ... और सवा महीने रुक गई ।
नवंबर के पहले हफ्ते दिवाली और भाईदूज सालों बाद मायके में मनाया। फिर छठ, देवोत्थान एकादशी और अक्षय नवमी जगधात्री पूजा अपने ससुराल में इस महीने मेरा सबसे पसंदीदा त्यौहार सामा चकेबा भी होता है जो भाईदूज से शुरू होता है और पूर्णिमा को सम्पन्न। यह त्यौहार भी भाई बहन के प्रेम का प्रतीक है। पौराणिक कथा के अनुसार सामा कृष्ण भगवान की बेटी थी जिन्हें प्रकृति से अत्यंत प्रेम था उनका अधिकतर समय वन में पशु पंक्षियों संग बीतता। एक बार चुगला ने सामा की चुगली कृष्ण भगवान से  कर दी कि वो वन में किसी परपुरुष के संग समय बिताती हैं। वो श्राप से चिड़िया बन गई जिससे मुक्ति उनके भाई द्वारा मिली.. बहुत ही रोचक कथा है। पौराणिक कथाओं में कितनी सत्यता है उसका तो पता नहीं पर हमारे मिथिला का यह पर्व जिसमें मिट्टी के खिलौने बनाना उन्हें रंगना सजाना, और सामा गीत.. बहुत ही अच्छा लगता है मुझे।अब बहुत कम लोग ही इस पर्व के बारे में जानते हैं और इसे मनाते हैं।एक तो अब लोगों के पास इतना समय नहीं है...इस तकनीकी युग में...अब कौन मिट्टी और रंगों से अपने हाथ और घर गंदे करें।पर मैं तो हर साल सामा चकेबा खेलती ही हूं, यहां बनाने में तो कोई साथ नहीं दे पाता पर आखिरी दिन हम सब मिलकर सामा चकेबा की विदाई करते हैं।गाने के लिए तो यूट्यूब है ही.. मुझे तो बस मिट्टी से खेलना उन्हें रंग बिरंगे आकार दे चिड़िया तोता और मूर्ति गढ़ना अच्छा लगता है। रोज शाम को दुबिया भोजन करवाना फिर अंतिम दिन चूड़ा दही गुड़ प्रसाद का भोग लगाना।जैसे बेटी की विदाई होती है न ठीक उसी तरह सामा की विदाई की जाती है। इस त्योहार की एक खासियत यह है कि पन्द्रह दिन लगातार गाने जाने वाले गाने पूरे साल कभी नहीं गाए जाते। जिस तरह बिहार के छठ पर्व को आज दुनिया में पहचान मिली है काश! कम से कम हमारे मिथिला वासी तो इस पर्व को न भूलें। मैं बचपन से देखती आई मम्मी को यह त्यौहार मनाते, दिल्ली में जहां मिट्टी और बाकी समान के लिए हम कितनी भाग दौड़ करते थे, वहां हमारे आस पास के सभी लोग आते थे हमारे इस खेल इस त्योहार में शामिल होने के लिए।
नवंबर के महीने में ही मैंने एक नए उपन्यास वो झल्ली सी लड़की पर लिखना शुरू किया पर समय अभाव बना रहा लिखने के लिए, सवा महीने बाद घर आने पर सब व्यवस्थित करना और फिर त्यौहारों की धूम.. बस लेखन पर इसका असर पड़ने लगा पर छोड़ा नहीं जब भी समय मिला नहीं कुछ तो डायरी जरूर लिखती रही।
नवंबर महीने में एक चीज और खास हुई वो ये कि मुझे लग रहा है कि थोड़े समय की दूरी से रिश्तों में नजदीकी बढ़ जाती है। दो साल से जो मेरे प्रति जो दूसरों के मन में कड़वाहट भर गई थी थोड़ी कड़वाहट सी घुल गई थी वो कम हो गई, और मेरी भी अहमियत समझ आने लगी।

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कविता झा'काव्या कवि'

#लेखनी

#डायरी लेखन प्रतियोगिता

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1 Comments

Ravi Goyal

30-Dec-2021 09:39 AM

वाह बेहतरीन लेखन। हमें तो लगा था आप हम लोगों के साथ हुई मुलाकात का जिक्र करेंगीं☺️

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